हर साल भद्र पद की शुक्ल दशमी को तेजाजी महाराज (Tejaji Maharaj festival in Hindi) का मेला लगता है। शुक्ल दशमी की तिथि में यह पर्व होने के कारण इसे तेजाजी दशमी या तेजा दशमी के नाम से बुलाया जाता है। भारत के अनेक प्रांतों में तेजाजी महाराज का श्रद्धा पूर्वक त्यौहार मनाया जाता है। इस त्यौहार को लोग अपनी श्रद्धा आस्था और पूरे विश्वास के साथ मनाते हैं। इस पर्व में दशमी और उसके कुछ दिन पहले भी काफी हर्षो उल्लास रहती है। जहां पर भी बाबा तेजाजी के मंदिर है सभी स्थानों पर पूरी रात करने के बाद दशमी के दिन मेला लगता है।
इस मंदिर में जो लोग सर्पदंश और जहरीले कीड़ों के विष की पीड़ा से तड़पते हैं, उन्हें यहां आने से मुक्ति मिलती है। तेजाजी महाराज के द्वार में आने पर जो लोग अपनी हाथ में धागा बांधकर के तेजाजी महाराज का नाम लेते हैं, वे सर्पदंश के विष से मुक्त हो जाते हैं।
कौन थे वीर तेजाजी महाराज? (History Of Veer Tejaji Maharaj in Hindi)
भगवान शिव के 11वें अवतार माने जाने वाले वीर तेजाजी को राजस्थान में लोक देवता के रूप में जाना जाता है। उन्हें ईश्वर के रूप में राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं कई राज्यों में पूजा जाता है। यदि हम राजस्थान में वीर महापुरुषों के इतिहास के पन्ने पलट कर देखें तो कई वीरों एवं महापुरुषों की गाथाएं भरी पड़ी है।
वीर तेजाजी एक ऐसे महापुरुष हैं जिन्होंने राजस्थान के इतिहास में अपना एक अलग स्थान बनाया है और काफी प्रसिद्धि प्राप्त की है। यह एक ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने अपने जीवन और परिवार के बारे में सोचे बगैर पूरे समाज सुधार पर विशेष ध्यान दिया। तेजाजी ने अपनी निष्ठा, स्वतंत्रता और सत्य के साथ अपने गौरव तथा मूल्यों को बरकरार रखा। इन्होंने जाति व्यवस्था का जिस प्रकार से विरोध किया है कि मानव विज्ञानी इन्हें एक नायक के रूप में संबोधित करते हैं।
वीर तेजाजी का जीवन परिचय (Biography Of Veer Tejaji Maharaj)
वीर तेजाजी का जन्म विक्रम संवत 1130 में खरनाल में हुआ था। जो माघ सुदी चौदस का दिन था। वे एक जाट घराने में जन्म लिए थे। वे मारवाड़ परिवार के ऐसे वीर प्रतापी महापुरुष थे जिन्होंने इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया है। उनके पिताजी नागौर जिले, जो राजस्थान में है, वहां के प्रमुख कुंवर ताहड़ जी थे। उनकी माता अजमेर के किशनगढ़ की प्रमुख थी जिनका नाम राम कंवर था।
भगवान शिव के उपासक रह चुके तेजाजी के माता-पिता से तेजाजी जैसे महान व्यक्तित्व का जन्म हुआ। कई पौराणिक कथाओं के अनुसार यह माना जाता है कि माता सुगना को तेजाजी जैसे पुत्र की प्राप्ति नाग देवता के आशीर्वाद से ही हुई थी। तेजाजी बचपन से ही एक कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। अतः यही कारण था कि उन्हें तेजा बाबा के नाम से भी जाना जाता था।
तेजाजी का वैवाहिक जीवन
वीर तेजाजी का विवाह पेमल से हुआ, जो रायमल जाट की पुत्री थी तथा इनका परिवार झांझर गोत्र के अंतर्गत आते थे। पेमल के पिता अपने गांव पनेर के प्रमुख थे। तेजाजी एवं पेमल का विवाह पुष्कर में 1074 में पुराने परंपराओं के आधार पर हुआ। जब तेजाजी केवल 9 महीने के एवं उनकी होने वाली पत्नी पेमल 6 महीने की थी तब उनका विवाह कर दिया गया था जो पुष्कर के पुष्कर घाट पर पूर्णिमा के दिन हुआ था।
पेमल के अपने मामा का नाम खाजू काला था। वे तेजाजी के परिवार से दुश्मनी रखते थे। अपने इसी व्यवहार के कारण वे तेजाजी और पेमल के इस रिश्ते के पक्ष में नहीं थे। तेजाजी और पेमल के विवाह के समय खाजू काला और ताहड़देव के बीच समस्याएं पैदा हो गई एवं वाद-विवाद हो गए।
जब खाजू काला अपने आपे से बाहर हो गए तब उन्होंने ताहड़ देव को मारने के उद्देश्य से उन पर हमला कर दिया। ताहड़ देव ने अपने एवं अपने परिवार की रक्षा के लिए खाजू काला को मौत के घाट उतार दिए। उन्होंने ऐसा नहीं सोचा था लेकिन अपने परिवार की रक्षा के लिये यह कदम उठाना पड़ा।
तेजाजी की पनेर यात्रा
जब तेजाजी अपनी पत्नी से मिलने पनेर जाने की अनुमति अपनी मां से मांगते हैं तब उनकी मां इसके लिए साफ इंकार कर देती है। परंतु तेजाजी ने जब दृढ़ निश्चय कर लिया तो उनकी मां अपनी बातों को उनके सामने टिकने ना दे सकी। जब तेजाजी की भाभी ने उन्हें शुभ मुहूर्त देख कर जाने के लिए कहा, तब पंडित जी के द्वारा शुभ मुहूर्त के लिए पत्रे देखे गए।
पंडित जी ने बताया कि श्रावण और भाद्र के महीने अशुभ है परंतु तेजाजी उनकी बात नहीं माने। इसके विरोध में उन्होंने यह कहा कि उन्हें तीज से पहले पनेर जाना है। उन्होंने स्वयं की तुलना शेर से करते हुए कहा कि शेर को किसी भी स्थान पर जाने के लिए मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती।
इसके बाद अगले दिन सूर्य उगने से पहले ही तेजाजी अपने ससुराल पनेर के लिए रवाना हो गए। चूंकि मां उन्हें पनेर जाने देना नहीं चाहती थी परंतु जब तेजाजी ने अपना निश्चय सुना दिया तो मां ने अपने हृदय पर हाथ रखते हुए उन्हें आशीर्वाद दिया और जाने दिया।
तेजा दशमी से जुड़ी पौराणिक कथा
तेजा दशमी तेजा जी के वीरता एवं पौरुष बल के कारण मनाया जाता है। तेजा जी की जीवन गाथा से जुड़ी एक ऐसी पौराणिक कथा है जिसने तेजा दशमी को जन्म दिया। जब तेजा जी अपनी बहन को लाने के लिए गए थे तब उन्होंने सुना कि कुछ डाकू वहां के गायों को चुरा कर ले गए थे। जब वे उन गायों को छुड़ाकर लाने के लिए उन डाकुओं के पास जा रहे थे तब उन्हें एक भयंकर सांप ने अपने आगे जाने से रोक लिया। जिस दौरान तेजाजी जा रहे थे उस समय बरसात का समय था।
जाते वक्त मार्ग में तेजाजी को बालू नाग मिला जिसके आग से उन्होंने अपनी रक्षा की। रास्ते के दौरान जब उनकी मुलाकात उस नाग से हुई तब नाग ने कहा कि आग में जलने से तेजा जी ने उसके जीवन को अनर्थ कर दिया है। यह कहकर नाग तेजा जी को डसने की इच्छा जताने लगा। परंतु तेजा जी ने बताया कि वह गायों को डाकुओं से बचाने के लिए अपने ससुराल जा रहे हैं।
उन्होंने नाग को वचन देते हुए कहा कि जब वह वापस उन गायों को लेकर आएंगे तब नाग उन्हें डस सकता है परंतु अभी उन्हें जाने की अनुमति दे दे। इसके बाद नाग की अनुमति पाने पर तेजाजी डाकुओं से गायों को लेने के लिए चल दिए।
जब तेजाजी वापस उन गायों को लेकर आ रहे थे तब वह मरणासन्न अवस्था में थे। इसका कारण यह था कि डाकुओं के साथ तेजा जी की भयंकर युद्ध हुई थी। वे पूर्ण रूप से गंभीर स्थिति में थे परंतु उन्हें नाग को दिया हुआ वचन पूर्ण रूप से याद था।
उनके मरणासन्न स्थिति को देखकर नाग ने उनसे पूछा कि तुम्हारे पूरे शरीर पर चोट है तो अपनी एक ऐसी जगह बताओ जहां तुम्हें चोट ना आई हो। इसके पश्चात तेजाजी ने अपने जीभ को निकाल कर संदेश देते हुए कहा कि केवल यही स्थान है जो घायल ना हुई हो। इसके बाद नाग ने तेजाजी को जीभ पर डस लिया।
जिस दिन तेजाजी के जीभ में सर्प ने डंसा था उस दिन भाद्रपद शुक्ल की दशमी का दिन था। तेजा जी के इस वीरता को देख कर वह सर्प काफी प्रसन्न हुआ था। और उसने तेजा जी को यह वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति आज के दिन सर्पदंश से पीड़ित होगा, उसे यदि तेजा जी के नाम का धागा बांधा जाए तो उसके जहर का कोई असर नहीं होगा। यही कारण है कि इसी दिन को तेजा दशमी के रूप में भी मनाया जाता है। तेजा जी के इस पौरुष के कारण उन्हें सांपों का देवता भी कहा जाता है। तेजा जी की यह शौर्य एवं महान गाथा उन्हें आज भी इतिहास के पन्नों में अमर रखती है।
तेजाजी का मंदिर
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में तेजाजी के विशेष मंदिरों का निर्माण किया गया है। तेजाजी को लोक देवता के रूप में ईश्वर माना जाता है। तेजाजी के प्रमुख मंदिरों में खरनाल में स्थित मंदिर की विशेष मान्यता है। यही कारण है कि जिस प्रकार अनेक शिवलिंग की पूजा की जाती है उसी तरह एक तेजलिंग का भी निर्माण किया गया था, जिसके उपासक जाट होते थे।
भारत में तेजाजी महाराज के कई मंदिर है लेकिन तेजाजी का मुख्य मंदिर करनाल में स्थित है। तेजाजी के मंदिर राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात तथा हरियाणा में स्थित है। एक प्रसिद्ध इतिहासकार श्री पी.एन.ओक ने दावा किया है कि ताजमहल शिव मंदिर है जिसका वास्तविक नाम तेजो महालय है। श्री पी.एन. ओक ने अपनी किताब ‘Tajmahal is a Hindu Temple Palace’ में 100 से भी अधिक व्याख्यान को प्रमाण करने का दावा करते हैं। The Illustrated Weekly of India के जाट लेख (28 जून 1971) के अनुसार आगरा मुख्य रूप से जाट लोगों का निवास रहा है। कहा जाता है तेजाजी महाराज शिव के 11 अवतार हैं। अनेक शिवलिंग में एक तेज लिंग का नाम भी शामिल है।
तेजाजी महाराज का मंदिर खरनाल में स्थित है। जो की राजस्थान के नागौर जिले के अंतर्गत आता है। यह मंदिर नागौर जोधपुर राजमार्ग पर नागौर से 16 किलोमीटर की दूरी में मौजूद है। वर्तमान समय की बात करें तो यह प्राचीन गांव में उत्तर पश्चिम में 1 मील की दूरी पर स्थित है। तेजाजी महाराज को पूरे राजस्थान में पूजा जाता है। तेजाजी को लोग लोक देवता के रूप में मानते हैं।
तेजाजी का मेला
वीर तेजाजी की वचनबद्धता देखकर भाषक नाग उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि आज के दिन भाद्रपद शुक्ल दशमी से पृथ्वी पर कोई भी प्राणी जो सर्वदंश से पीड़ित होगा। उसे तुम्हारे नाम की तांति बांधने पर जहर का कोई असर नहीं होगा।
उसी दिन से तेजा दशमी पर्व मनाने की परंपरा जारी है। आपको बताते हैं कि कई वर्षों से राजस्थान के खरनाल और मध्यप्रदेश के गांव में नवमी एवं दशमी को तेजाजी का मेला लगता है।
उसके द्वारा रोगी दुखी पीड़ितों को धागा पहनाया जाता है एवं महिलाओं की गोद भरी जाती है। शाम के समय प्रसाद का भंडारा भी होता है। ऐसे सत्यवादी और शूर वीर तेजा महाराज जी के पर्व पर उनके स्थानों पर लोग अपनी मन्नतें मांगने के लिए जाते हैं। उनकी मन्नतें जब पूरी हो जाती है तो वह कुछ ना कुछ अपने मन से दक्षिणा चढ़ाते हैं और पूजा अर्चना करते हैं।
तेजाजी का मेला बडे हर्षो उल्लास के साथ आयोजन किया जाता है। लोक देवता तेजाजी के निवाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजा दशमी के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान शुभ यात्रा भी निकाली जाती है।
तेजा दशमी क्यों मनाई जाती हैं?
वीर तेजाजी महाराज का जन्म नागौर जिले में खरनाल गांव में हुआ था। वे अपनी बचपन से ही बहुत वीर और साहसी पुरुष रहे थे। उन्हें भगवान का दर्जा दे कर लोग इनकी पूजा करते हैं।
एक बार तेजाजी महाराज जब अपनी शादी के सामने अपनी बहन परमल को उनकी ससुराल लाने के लिए जाते हैं। तब उन्हें पता चलता है कि मेणा नामक डाकू ने उसकी बहन पेमल की ससुराल से सभी गायों को लूटकर ले गया है। फिर वहां अपने साथी के साथ गणेश जंगल में मेला डाकू से गायों को छुड़ाने के लिए चले जाते हैं। लेकिन वही रास्ते में एक बांबी के पास भाषक नामक नाग घोड़े के समक्ष आ जाता है। वह तेजा को डसना चाहता था।
बहुत कहे जाने पर भाषक सर्प वहां से हटने के लिए तैयार नहीं होते हैं। वीर तेजाजी उस सर्प को वचन देते हैं कि मैं अपनी बहन के ससुराल के सभी गायों को डाकुओं से छुड़ा लेने के बाद वापस आ जाऊंगा।’ युद्ध के दौरान तेजाजी डाकू से लड़ाई करते हैं और बहुत ही भीषण युद्ध होता है। इस युद्ध में वह सभी डाकुओं को मार देते हैं। इस युद्ध में वह पूरी तरह से लहूलुहान हो जाते हैं। फिर वह अपने साथी को सभी गायों के साथ अपनी बहन के ससुराल भेज देते हैं। वह खुद भाषिक सर्प के पास चले जाते हैं।
तेजा को आता देख भाषण नाग आश्चर्य में पड़ जाता है। वह कहता है कि ‘तुम्हारा तो पूरा शरीर कट गया। तुम्हारा शरीर पूरा लहूलुहान हो गया है। मैं दंश कहाँ मारूं।’ इसके बाद बहादुर तेजा कहते हैं कि ‘हे भाषक नाग आप मेरे जीभ में दंश मार सकते हैं।’ वीर तेजाजी की वचन को पूरा करते हुए देखकर भटकना उन्हें आशीर्वाद देते हैं-‘आज के दिन (भाद्रपद शुक्ल दशमी) से पृथ्वी पर कोई भी प्राणी जो सर्पदंश से पीड़ित हो उसकी बाहों में तुम्हारे नाम का धागा बांधने पर विष का कोई असर नहीं होगा।’ उस दिन से हर भाद्रपद शुक्ल दशमी में तेजादशमी का पर्व मनाने की परंपरा जारी है।
वीर तेजाजी कैसे कहलाए लोकदेवता?
भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजा दशमी का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 28 अगस्त 2020 शुक्रवार को मनाया गया है। तेजा दशमी का पर्व मध्य प्रदेश और राजस्थान के गांव में मनाया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि सर्पदंश से बचने के लिए वीर तेजाजी का पूजन किया जाता है। जिसके बाद से उन्हें सभी लोक देवता के रूप में पूजा जाता है।
भारत में अनेक प्रांतों में तेजा दशमी का पर्व श्रद्धा के रूप में मनाया जाता है। भाद्रपद शुक्ला नवमी की पूरी रात रतजगा किया जाता है। उसके अगले दिन दशमी को जिन जिन स्थानों पर वीर तेजाजी के मंदिर हैं, वहाँ मेला लगता है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु नारियल चढ़ाने और बाबा की प्रसादी ग्रहण करने के लिए तेजाजी के मंदिर जाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि इन मंदिरों में बरसों से पीड़ित कोई व्यक्ति अगर सर्पदंश से पीड़ित हो या अन्य किसी जहरीले कीड़े ने उसे काटा हो तो उसे छुड़ाने के लिए बाबा जी के नाम का एक धागा दिया जाता है। ऐसा करने से पीड़ित पर सांप के जहर का असर नहीं होता और वह पूर्ण रुप से स्वस्थ रहता है।
तेजा दशमी की शुरुआत कैसे हुई?
तेजाजी बचपन से ही एक वीर साहसी थे। बचपन में भी लोग उनके साहसिक कारनामों को सुनकर आश्चर्यचकित रह जाते थे। यह बात उस समय की है जब तेजाजी अपनी बहन पेमल को लेने उनकी ससुराल जा रहे थे। रास्ते में उन्हें यह पता चला कि उनकी बहन पेमल की ससुराल की सारी गायों को मेणा नामक एक डाकू अपने साथियों के साथ लूटकर ले गया है। इस जानकारी के मिलते ही तेजाजी ने यह फैसला किया कि वह अपनी बहन की गायों को छुड़ाकर लाएंगे।
बाद में वह अपनी बहन के ससुराल वालों के गाय को लाने के लिये निकल पड़े। वह भाषक नाग तेजाजी को डसना चाहता था। तेजाजी के बार बार कहने पर भी वह भाषक नाग वहां से नहीं हट रहा था। तब तेजाजी ने भाषक नाग को वचन दिया कि मैं अपनी बहन की गाय को मेणा डाकू से छुड़वा कर वापस ले आता हूँ। उसके बाद में यही आऊंगा। बाद में वह सभी डाकुओं को मार कर उस नाग के पास जाते हैं।
युद्ध में लहू लुहान होने की वजह से साँप उसके चीभ पर डंसा। जिसके बाद उन्हें वरदान दिया गया कि उनके नाम का धागा पहनने से किसी व्यक्ति साँप के विश का कोई असर नहीं होगा।