Home निबंध Ashadhi Ekadashi Essay in Hindi | आषाढ़ी एकादशी निबंध हिंदी में

Ashadhi Ekadashi Essay in Hindi | आषाढ़ी एकादशी निबंध हिंदी में

Ashadhi Ekadashi Essay in Hindi

आषाढ़ (Ashadhi Ekadashi) के शुक्ल पक्ष के आषाढी एकादशी के व्रत का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में आषाढी एकादशी का व्रत विशेष एवं महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ऐसा माना जाता है कि इसी देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान श्री विष्णु का शयन काल शुरू होता है। यही कारण है कि इस व्रत को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। आषाढी एकादशी को और कई नाम से भी जाना जाता है जैसे पद्मा एकादशी, हरिशयनी एकादशी एवं देवशयनी एकादशी।

जगन्नाथ रथ यात्रा के तुरंत बाद आषाढी एकादशी का प्रारंभ होता है एवं इस एकादशी का व्रत जून या जुलाई के महीने में किया जाता है , जिसे काफी उत्तम माना जाता है। भगवान विष्णु के योग निद्रा में जाने के बाद चार महीनों तक किसी भी प्रकार के कोई शुभ कार्य नहीं होते हैं क्योंकि भगवान विष्णु इस समय योगनिद्रा में विराजमान रहते हैं। सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति क तेज इन चार महीनों में काफी कम रहता है। ऐसी मान्यता है कि इन चारों महीनों में सभी धाम ब्रज में आते हैं, इस कारण ब्रज यात्रा भी काफी शुभकारी मानी गई है।

आषाढी एकादशी की कथा (Tale of Ashadhi Ekadashi)

आषाढी एकादशी के बारे में एक कथा काफी प्रचलित है। धर्मराज युधिष्ठिर ने केशव को संबोधित करते हुए आषाढी एकादशी के बारे में पूछा- ” हे केशव! आषाढ़ शुक्ल एकादशी की गाथा क्या है? इस व्रत को किस प्रकार से किया जा सकता है एवं इसका पूजन किस तिथि को करने से कार्य मंगलमय होता है?”

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को संबोधित करते हुए प्रश्नों का उत्तर दिया एवं कहा- “हे युधिष्ठिर! ब्रह्माजी ने नारदजी से आषाढी एकादशी के बारे में जो कथा कही थी वही आज मैं तुमसे कहने जा रहा हूं। नारद जी ने भी ब्रह्मा जी से यही प्रश्न किया था। ” तभी ब्रह्मा जी ने कहा-” आषाढी एकादशी जिसे देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है, उसका व्रत सभी प्रकार के व्रतों से उत्तम माना गया है। इस व्रत को जो व्यक्ति करता है उसके सभी पापों का नाश हो जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु का अति प्रिय व्रत है अर्थात जो मनुष्य इस व्रत को करता है उससे भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं। उस मनुष्य पर भगवान विष्णु की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है। अतः आषाढी एकादशी का विशेष महत्व होता है।

आषाढी एकादशी का प्रभाव (Effect of Ashadhi Ekadashi)

एक पौराणिक कथा काफी प्रचलित है जिसमें आषाढी एकादशी के प्रभाव का वर्णन मिलता है। सूर्यवंश में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती राजा हुआ करते थे। वह एक ऐसे राजा थे जिन्हें सत्यवादी एवं महान प्रतापी राजा में से एक माना जाता था। वे अपनी प्रजा का पूर्ण ध्यान रखते थे एवं सदैव अपनी जनता को खुशहाल देखना चाहते थे। उनकी राज्य में कभी भी किसी प्रकार के अकाल की स्थिति नहीं आई। एक समय ऐसा आया जिसमें उस राजा के राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा भी नहीं हुई और अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई। अनाज उत्पन्न ना होने पर राज्य में जो यज्ञ होते थे वह भी बंद कर दिए गए। इससे परेशान होकर प्रजा राजा के पास अपनी समस्याओं को लेकर गई एवं अकाल की भीषण कठोर स्थिति का वर्णन किया।

प्रजा राजा से यह कहने लगी कि किसी भी उपाय द्वारा इस भीषण अकाल की स्थिति को दूर करना अत्यावश्यक हो गया है। राजा अपने सेना के साथ जंगल की ओर गए । इसके पश्चात वे ब्रह्मा जी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में जाकर उन्हें प्रणाम किया और संपूर्ण स्थिति का वर्णन भी किया।

राजा ने हाथ जोड़कर ऋषि से कहा, “ हे प्रभु मैंने सभी प्रकार के धर्म का पालन किया है परंतु आज स्थिति कुछ इस तरह से उत्पन्न हो गई है कि राज्य में पूर्ण रूप से भयानक अकाल पड़ चुका है और इससे प्रजा काफी दुखी हुई है।“ राजा ने यह भी कहा कि मैं पूरे धर्म के अनुसार राज्य करता हूं परंतु इसके बावजूद इस अकाल की स्थिति के उत्पन्न होने का कारण मुझे समझ में नहीं आ रही है। ऋषि ने राजा के संपूर्ण कथा व्यथा को सुनकर कहा, “हे राजन यह सतयुग है, जो सभी युगों से उत्तम माना गया है। ऋषि ने यह भी बताया की इस युग में वेदों को पढ़ने का अधिकार केवल ब्रह्मा को ही प्राप्त है परंतु आपके राज्य में एक शूद्र द्वारा तपस्या की जा रही है। इस दोष के कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है और तीन वर्षों से अकाल की स्थिति भी उत्पन्न हो गई है।

ऋषि ने राजा को यह सलाह देते हुए कहा कि उस शुद्र का वध कर दिया जाए जो यह तपस्या कर रहा है परंतु राजा ना माने। उनका मानना था कि एक निरपराधी तपस्या करने वाले शुद्र को मारना उचित ना होगा। अतः ऋषि से उन्होंने अन्य उपाय बताने के लिए कहा जिससे उनके राज्य में अकाल की स्थिति का नाश हो सके। इसके फलस्वरूप अंगिरा ऋषि ने राजा मांधाता को आषाढी मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के व्रत करने की सलाह दी। उन्होंने आषाढी एकादशी के महत्व का बखान भी किया । उन्होंने राजा को सलाह दी की इस व्रत के प्रभाव से उनका राज्य वैभव पूर्ण हो जाएगा। 3 वर्षों से रुकी हुई वर्षा पुनः प्रारंभ हो जाएगी ।

राजा मांधाता ने आषाढी एकादशी का व्रत लग्न एवं सच्ची निष्ठा के साथ पूर्ण किया और इसके फलस्वरूप यह देखा गया कि राज्य में पुनः वर्षा हुई एवं प्रजा खुशी से झूम उठे। राजा एवं प्रजा एक बार फिर पहले की तरह धनी धानी से परिपूर्ण हो गईइसके पश्चात राज्य एक बार फिर सुख समृद्धि से भरपूर हो गया। यही कारण है कि आषाढी एकादशी का व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है जो मनुष्य को काफी लाभ पहुंचाता है। यह व्रत एक ऐसा व्रत है, जो इस लोक में सुख समृद्धि प्रदान करता है एवं परलोक के लिए मुक्ति का द्वार खोल देता है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस कथा को सुनने से मनुष्य के समस्त पाप धुल जाते हैं।

आषाढी एकादशी को पूर्ण करने की विधि (Method of completion of Ashadhi Ekadashi)

आषाढी एकादशी के दिन प्रातः काल सुबह उठ कर गृह कार्य जैसे साफ-सफाई आदि कर लेनी चाहिए। प्रत्येक व्रत की पूजन विधि अलग-अलग तरह की होती है एवं सभी प्रकार के व्रत में अलग-अलग अनुष्ठान की भी किए जाते हैं इसके पश्चात प्रतिदिन के कर्म से निवृत्त होकर एवं स्नान कर अपने घर में पवित्र जल का छिड़काव करना चाहिए। इसके पश्चात घर की पूजन स्थल या किसी पवित्र स्थान पर प्रभु श्री विष्णु के ऐसी मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए जो सोने, चांदी, ताम्बा अथवा पीतल से निर्मित हो। इस मूर्ति का पूजन करने के पश्चात श्री हरि विष्णु को पीतांबर से विभूषित करना आवश्यक होता है। पूजन आदि के बाद व्रत कथा सुननी चाहिए और अंत में आरती करने तथा प्रसाद वितरण करने के पश्चात सफेद चादर से ढके हुए गद्दी एवं तकिए वाले पलंग पर भगवान विष्णु को शयन करवाना चाहिए। इस प्रकार आषाढी एकादशी की पूजा पूर्ण एवं सफल होती है।

आषाढी एकादशी में ग्रहण करने योग्य वस्तुएं

आषाढी एकादशी के दौरान शरीर को शुद्ध करने अथवा सुंदरता प्राप्त करने के लिए परिमीत प्रमाण के पंचगव्य का ग्रहण किया जाता है। इस दौरान अपने वंश विधि के लिए नियमित दूध का ग्रहण करना उत्तम माना जाता है। सभी प्रकार के पापों का नाश करने के लिए तथा पुण्य प्राप्ति के लिए एकमुक्त, नक्तव्रत, अयाचित भोजन एवं सर्वथा उपवास करने का व्रत भी धारण करना चाहिए। इससे आषाढी एकादशी का विशेष लाभ प्राप्त होता है।

आषाढी एकादशी में त्याग की जाने वाली वस्तुएं (Objects to be abandoned in Ashadhi Ekadashi)

आषाढी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु के लिए होता है इस कारण इसे पवित्र माना गया है। इस कारण यह आवश्यक है की भगवान विष्णु के शयन के दिनों में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं होने चाहिए। इसके अतिरिक्त पलंग पर सोना, मिथ्या वचन बोलना, मांस मछली आदि का सेवन करना आदि को अपवित्र माना गया है। इन दिनों भोजन में मूली, बैंगन आदि सब्जियों का भी त्याग कर देना चाहिए।

आषाढी एकादशी के व्रत का फल

आषाढी एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है । ब्रह्म वैवर्त पुराण में भी इसका उल्लेख किया गया है। इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस व्रत के विषय में ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति यह व्रत करता है । आषाढी एकादशी के इस व्रत को करने से विशेष लाभ की पूर्ति होती है। पूरे विधि विधान से करने पर इस व्रत का फल मिलता है एवं भगवान विष्णु की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है। इस व्रत को करने के पश्चात सुख समृद्धि एवं वैभव की कमी नहीं होती बल्कि मां लक्ष्मी सदैव विराजमान रहती है।